ट्रंप ने बताया कि कनाडा ने भी इस सिस्टम में शामिल होने का अनुरोध किया था.
इस साल की शुरुआत में अमेरिका आए कनाडा के तत्कालीन रक्षा मंत्री बिल ब्लेयर ने माना था कि उनके देश ने भी गोल्डन डोम प्रोजेक्ट में शामिल होने की दिलचस्पी जाहिर की थी. उन्होंने कहा था ये समझदारी भरा फैसला है और ये उनके देश के हित में होगा.
उन्होंने कहा था, ”कनाडा को जानना होगा कि इस क्षेत्र में क्या चल रहा है.” उसे आर्कटिक क्षेत्र के अलावा दूसरे इलाक़े के ख़तरों से भी वाकिफ रहना होगा.
ट्रंप ने बताया है कि गोल्डन डोम सिस्टम दुनिया के दूसरे हिस्सों या अंतरिक्ष से दागी गई मिसाइलों को रोकने में सक्षम होगा.
ये सिस्टम कुछ हद तक इसराइल के आयरन डोम से प्रेरित है. इसराइल साल 2011 से रॉकेट और मिसाइल हमलों को रोकने में इसका इस्तेमाल कर रहा है.
हालांकि गोल्डन डोम इससे काफ़ी बड़ा होगा और ये हाइपरसोनिक हथियारों समेत ज़्यादा व्यापक ख़तरों का सामना करने में सक्षम होगा.
ये ध्वनि की गति और फ्रैक्शनल ऑर्बिटल बॉम्बार्डमेंट सिस्टम्स यानी फोब्स से भी ज़्यादा तेज गति से जगह बदल सकेगा. फोब्स अंतरिक्ष से हथियार दाग सकता है.
ट्रंप ने बताया इस तरह के तमाम ख़तरों को हवा में ही ख़त्म किया जा सकेगा. इसकी सफलता दर लगभग सौ फ़ीसदी है.
इससे पहले अमेरिकी अधिकारी कह चुके हैं कि गोल्डन डोम से मिसाइलों को अलग-अलग चरणों में रोका जा सकेगा. इससे मिसाइलों की तैनाती और दागे जाने के दौरान हवा में उनकी मौजूदगी भी रुक सकेगी.
अमेरिकी रक्षा अधिकारियों के मुताबिक़ इस सिस्टम के कई पहलू एक ही सेंट्रलाइज्ड कमांड के तहत काम करेंगे.
ट्रंप ने मंगलवार को बताया कि इस सिस्टम के लिए शुरुआत में 25 अरब डॉलर ख़र्च होंगे. इसका पूरा ख़र्च 175 अरब डॉलर का होगा.
25 अरब डॉलर का ख़र्च ट्रंप के टैक्स पर ‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल’ के तहत हासिल करने का लक्ष्य रखा किया गया है. हालांकि ये बिल अभी पास नहीं हुआ है.
हालांकि अमेरिकी संसद के बजट विभाग ने कहा है कि सरकार इस सिस्टम पर इससे ज़्यादा भी ख़र्च कर सकती है.
अगले दो दशक में ये बढ़ कर 542 अरब डॉलर तक भी पहुंच सकता है. इतना ख़र्च इस सिस्टम के सिर्फ अंतरिक्ष आधारित हिस्से पर ही हो सकता है.
अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका का मौजूदा डिफेंस सिस्टम रूस और चीन की नई मिसाइल टेक्नोलॉजी से पिछड़ गया है.
ट्रंप ने मंगलवार को कहा, ”इस समय हमारे पास कोई सिस्टम नहीं है. हमारे पास कुछ मिसाइलें हैं और मिसाइल डिफेंस हैं, लेकिन कोई सिस्टम नहीं है. ऐसा कभी नहीं रहा है.”
अमेरिकी डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी की ओर से जारी एक ब्रीफिंग से जुड़े दस्तावेज़ में कहा गया है कि मिसाइलों से आने वाले दिनों में मिसाइलों के ख़तरों का दायरा और बढ़ेगा.
क्योंकि इनके हमले और ज़्यादा मारक हो सकते हैं. चीन और रूस अमेरिकी रक्षा तंत्र की ख़ामियों का फ़ायदा उठाने के लिए तेजी से अपने सिस्टम डिजाइन करने में लगे हैं.